अंतत: खेती से मुनाफाखोरी का ककहरा
खाद्य व्यापार से मुनाफा किसान नहीं, बल्कि बड़ी-बड़ी कंपनियां पीट रही हैं
By
Richard Mahapatra
On:
Thursday 19 October 2023
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कुछ महीने पहले जब टमाटर के दाम आसमान पर थे, तब कुछ किसानों ने मुनाफा कमा लिया तो यह बड़ी खबर बन गई। हालांकि इसके कुछ दिनों बाद ही भाव कम हो गए और किसानों को हजारों टन टमाटर सड़क पर फेंकना पड़ा।
खाद्य पदार्थों की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव के इस समय में कोई यह सोचकर हैरान हो सकता है कि आखिर मुनाफा कौन कमा रहा है अथवा कौन घाटा उठा रहा है।
यह तो निश्चित है कि जब टमाटर के भाव ऊंचे होते हैं तो अधिकांश किसानों को उसका फायदा नहीं मिलता। लेकिन उपभोक्ता इसकी भारी कीमत चुकाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि लाभ किसकी झोली में जाता है?
यह सवाल तब और बड़ा हो जाता है कि जब हम वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में इस पर विचार करते हैं। बहुत सी रिपोर्ट्स में पाया गया है कि 2014 से जलवायु संबंधी घटनाओं ने कृषि उत्पादन में अनिश्चितता बढ़ा दी है, जिसके चलते खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ी है। इससे बाजार भी बेहद अस्थिर हो गया है। ऐसी स्थितियों में किसानों को नुकसान झेलना पड़ता है लेकिन क्या कृषि व्यवसाय से जुड़े लोगों के साथ भी ऐसा होता है?
संयुक्त राष्ट्र की हालिया “ट्रेड एंड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2023” इस प्रश्न का उत्तर देती है। रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक खाद्य व्यापारियों में ऐसी स्थिति में जमकर मुनाफा पीटा है, जिससे न केवल उत्पादक बल्कि उपभोक्ता के सामने की अस्तित्व का संकट खड़ा हो सकता है।
भोजन की महंगाई ने करोड़ों लोगों को खाद्य असुरक्षित कर दिया है। विश्लेषण में पाया गया है कि पिछले कुछ सालों में खाद्य पदार्थों की कीमतों में अस्थिरता के वक्त ही वैश्विक खाद्य व्यापारियों का मुनाफा उच्चतम स्तर पर पहुंचा है। रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक खाद्य बाजार के लगभग 70 प्रतिशत हिस्से को नियंत्रित करने वाली चार कंपनियां हैं, जिन्हें एबीसीडी कहा जाता है।
2021-22
में अब तक का सबसे अधिक मुनाफा कमाने वाली ये कंपनियां चार सबसे बड़े कमोडिटी व्यापारियों आर्चर डेनियल मिडलैंड, बंज, कारगिल और लुई एंड ड्रेफस कंपनी का प्रतिनिधित्व करती हैं।
रिपोर्ट में गैर-लाभकारी संगठन ऑक्सफैम के एक अध्ययन के हवाले से कहा गया है, “18 खाद्य और बेवरेज कॉरपोरेशन ने 2021 और 2022 में औसतन प्रति वर्ष लगभग 14 बिलियन डॉलर का अप्रत्याशित मुनाफा कमाया।” यह मुनाफा पूर्वी अफ्रीका में जीवन रक्षक खाद्य सहायता के लिए की जा रही फंडिंग से दोगुने से भी अधिक है। इसी तरह, यूरोप में खाद्य महंगाई में मुनाफाखोरी का योगदान 20 प्रतिशत था।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कुछ कंपनियों की इस “मुनाफाखोरी” को “संस्थागत संकट” के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है जिसने वैश्विक खाद्य प्रणाली को जकड़ लिया है। रिपोर्ट में कहा गया है, “प्रमुख कृषि निगमों द्वारा खाद्य प्रणाली पर बढ़ते दखल से यह जोखिम बढ़ जाता है कि खाद्य कीमतों में अत्यधिक उतार-चढ़ाव सामान्य हो पाएगा।”
रिपोर्ट में कहा गया है, “दशकों के विलय और अधिग्रहण के माध्यम से ऐसी कंपनियां बड़ी मात्रा में बाजार डेटा एकत्र करते हुए आपूर्ति श्रृंखला के ऊपर-नीचे अपने प्रभाव का विस्तार करने में सक्षम रही हैं।” ये कंपनियां अब कृषि वस्तुओं के लिए फाइनेंसर, व्यापार प्रभावित करने वाली और मूल्य निर्धारक की भूमिका में पहुंच गईं हैं।
इन कंपनियों का दखल इस हद तक है कि वे कमोडिटी बाजारों में अस्थिरता से बचाव में सरकारों की मदद भी करती हैं। एक तरह से कृषि व्यवसाय पर इनका पूर्ण नियंत्रण है और संकट की घड़ी में ये केवल मोटा मुनाफा अर्जित करना चाहती हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से वैश्विक खाद्य कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं। रिपोर्ट के बड़े कृषि-निगमों द्वारा संस्थागत मुनाफाखोरी को इसके लिए जिम्मेदार माना गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है, “एबीसीडी जैसी कंपनियां कीमतें निर्धारित करने, फंडिंग और वित्तीय बाजारों में सीधे भागीदारी के मामले में विशेषाधिकार वाली स्थिति में पहुंच गई हैं।
यह न केवल संगठित बाजार में सट्टा व्यापार को सक्षम बनाता है, बल्कि व्यक्तियों के बीच लेनदेन या पर्दें के पीछे व्यापार को भी संभव बनाता है। इस पर उन्नत देशों में अधिकांश सरकारों का कोई अधिकार या नियंत्रण नहीं है।”
रिपोर्ट में खाद्य और कृषि संगठन के एक पूर्व वरिष्ठ अर्थशास्त्री के इस सवाल का हवाला दिया गया कि खाद्य प्रणाली की निगरानी कौन करता है। जवाब है “कोई नहीं।”
कीमतों में वृद्धि के कारण 10 करोड़ से अधिक लोग खाद्य असुरक्षित हो गए हैं। अब वैश्विक खाद्य प्रणाली की निगरानी के लिए किसी को उत्तरदायी बनाने का समय आ गया है। अगर ऐसा होता है कि तो यह एक अच्छा कदम होगा।
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