Wednesday, 31 May 2017

संपादकीयः दवा का आधार (जनसत्ता) December 3, 2016

संपादकीयः दवा का आधार (जनसत्ता)

दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार यह साबित नहीं कर पाई कि दस मार्च को 344 एडीसी (फिक्स डोज कांबिनेशन) दवाओं को प्रतिबंधित करने का उसका फैसला विधिसम्मत था। लिहाजा, न्यायालय ने स्वास्थ्य मंत्रालय के इस आदेश को गुरुवार को निरस्त कर दिया। लिहाजा कोरेक्स कफ सीरप, विक्स एक्शन-500 समेत कई एंटीबायोटिक दवाओं के फिर से बिक्री के रास्ते खुल गए हैं। केंद्र सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति की सिफारिश पर इन दवाओं को प्रतिबंधित किया था। समिति ने पाया था कि इन दवाओं का साइड-इफेक्ट होता है और कई दवाएं तो अपने दावे के हिसाब से बीमारियों से लड़ने में सहायक भी नहीं होतीं। लेकिन न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि केंद्र सरकार ने निहायत ‘बेतरतीब तरीके’ से इन दवाओं को प्रतिबंधित किया है। पफीजर, सिपला जैसी नामी-गिरामी कंपनियों समेत 454 दवा कंपनियों की ओर से दाखिल याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए न्यायालय ने यह भी कहा कि सरकार ने जो निर्णय लिया, परिस्थितियों के हिसाब से वैसा करने की कोई अनिवार्यता नहीं थी।
दवा कंपनियों की दलील थी कि सरकार ने फैसला लेते समय दवा व प्रसाधन अधिनियम की प्रक्रियाओं पर ठीक से अमल नहीं किया। दवा तकनीकी सलाहकार बोर्ड या औषधीय सलाहकार समिति से भी इस बारे में राय नहीं ली गई, बल्कि एक तकनीकी समिति गठित करके उसकी सिफारिश सरकार ने मान ली। ऐसा करना कानूनन ठीक नहीं था। इसके अलावा, किसी दवा को प्रतिबंधित करने से पहले निर्माता कंपनी को तीन महीने का नोटिस दिया जाना चाहिए था। दवा कंपनियों ने यह भी कहा कि जिस तकनीकी समिति की सिफारिश पर पाबंदी लागू की गई, वह एक गैर-स्वायत्त समिति थी, जिसेऐसी सलाह देने का वैध अधिकार नहीं था। इन दवाओं का सरकार ने न तो कोई क्लीनिकल परीक्षण कराया और न ही होने वाले नुकसान का कोई आंकड़ा दिया, बस सीधे-सीधे उन्हें ‘बेकार’ बता दिया। केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि दवा कंपनियां, जिन समितियों की सलाह लेने की बात कर रही हैं, उसकी कोई जरूरत नहीं थी, क्योंकि दवाओं का नुकसानदेह होना ही पर्याप्त था। और पाबंदी ही इसका एकमात्र जवाब था। इसके अलावा, ऐसी किसी भी दवा का लाइसेंस दवा एवं औषधि महानियंत्रक से लेना जरूरी होता है, न कि किसी राज्य की ड्रग लाइसेंसिंग एजेंसी से, जैसा कि तमाम कंपनियों ने कर रखा है। फिर, कानून सरकार को यह अधिकार देता है कि वह ‘अपनी संतुष्टि’ के आधार पर कार्रवाई कर सकती है।
काबिलेगौर है इससे पहले भी इस तरह की दवाओं को प्रतिबंधित करने की मांग उठती रही है। दुनिया भर में हुए कई अध्ययनों में भी यह पाया गया कि इस तरह की इकलौती खुराक वाली दवाइयों से कोई लाभ नहीं होता। मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि एफडीसी दवाओं को लेकर स्पष्ट और पारदर्शी नीति बननी चाहिए। अब जबकि न्यायालय ने इन दवाओं से रोक पूरी तरह से हटा ली है तो यह मानना जल्दबाजी होगी कि ये फौरन बाजार में उपल्बध हो सकेंगी। पूरी संभावना है कि केंद्र सुप्रीम कोर्ट में अपील करे, क्योंकि उसने वहां पहले ही यह याचिका दायर कर रखी है कि इस बारे में सभी याचिकाओं की सुनवाई वहीं हो।
सौजन्य – जनसत्ता, 03-12-2016

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