लड़खड़ाता स्वास्थ्य ढांचा (दैनिक जागरण)
जम्मू-कश्मीर में स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव को दूर करने के लिए राज्यपाल का देश के सभी डॉक्टरों से अपने अनुभव साझा करने की अपील से निसंदेह हेल्थ सेवाओं को बेहतर बनाया जा सकता है। डॉक्टरों के जम्मू में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में राज्यपाल ने ऐसा सिस्टम तैयार करने की डॉक्टरों को सलाह दी, जिससे विभिन्न बीमारियों से जूझ रहे लोगों को बेहतर और सस्ता इलाज मिल सके। स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर अगर रिसर्च और और आपसी तालमेल बने तो हेल्थ सेवाओं में सुधार हो सकता है। विडंबना यह है कि राज्य में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है। जम्मू के सबसे बड़े राजकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल में न्यूरो सर्जन, गायनी विभाग में इनफर्टिलिटी केंद्र, आधुनिक डायग्नॉस्टिक और प्रशिक्षित पैरा मेडिकल स्टाफ की कमी है। कई विभागों की हालत किसी से छिपी नहीं है। जम्मू मेडिकल कॉलेज अस्पताल में फैकेलिटी की कमी के कारण भविष्य में अच्छे डॉक्टर तैयार नहीं हो पाएंगे। विडंबना यह है कि राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं का आबादी के हिसाब से विस्तारीकरण नहीं हो पाया। अस्पतालों में डॉक्टरों की नियुक्तियां नहीं हो पाईं, जिससे अस्पतालों में मरीजों की भीड़ बढ़ती जा रही है। ऐसी परिस्थितियों में डॉक्टर भी मरीजों को ज्यादा समय नहीं दे पाते। ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में प्राइमरी स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर तहसील एवं जिला स्तर के अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी। मामूली बीमारी व घायलों को जम्मू के सरकारी अस्पताल में शिफ्ट कर देने से शहरों के अस्पतालों में रश बढऩा स्वभाविक है। अगर बात जम्मू के राजकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल की करें तो यहां न्यूरो सर्जरी विभाग में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी से सिर की चोट वाले मरीजों के तीमारदार उन्हें पड़ोसी राज्य पंजाब या फिर दिल्ली के अस्पतालों में ले जाते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर पीडि़त व्यक्ति का तो उपर वाला ही होता है। यही कारण है कि जम्मू, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा के निजी अस्पतालों के डॉक्टरों की मंडी बन गया है। अब बड़े-बड़े अस्पतालों के डॉक्टरों ने भी जगह-जगह दुकानें खोल रखी है। बेहतर तो यह होगा कि अस्पतालों के मूलभूत ढांचों को दुरुस्त करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।
[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]
सौजन्य – दैनिक जागरण, 06-12-2016
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