विरोध होना स्वाभाविक (दैनिक जागरण)
सरकारी अस्पतालों में दवाइयों की दुकानें खोलने का दवा विक्रेताओं द्वारा विरोध करना स्वभाविक है। नि:संदेह इससे विरोध कर रहे सैकड़ों दवा विक्रेताओं को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। अस्पतालों में दवाइयों की दुकानें खोलने का फैसला करीब एक साल पहले भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार ने किया था। इसका मकसद मरीजों को निर्धारित मूल्य से दस फीसद सस्ती दवाइयां उपलब्ध करवाना था। यह सही है कि जिस समय यह फैसला लिया, उस समय मरीजों को सस्ती दवाइयां उपलब्ध करवाना लक्ष्य रहा हो। इस नीति को लागू करने से पहले स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग ने कुछ कमियां रखीं जिसने विरोध की नींव रख दी। सर्वप्रथम अगर विभाग को दुकानें खोलनी ही थी तो उसे दवा विक्रेताओं को विश्वास में लेना चाहिए था। यही नहीं उसे पूरे राज्य के लिए एक साथ टेंडर निकालने की जरूरत थी। विडंबना यह है कि दवाइयों की दुकानें खोलने का फैसला सिर्फ जम्मू संभाग के अस्पतालों के लिए ही हुआ। पहले से जम्मू संभाग के साथ हमेशा भेदभाव होने के आरोप सहने वाली सरकार ने विरोध का एक और अवसर दे दिया। जम्मू में दो हजार से अधिक दवा विक्रेता हैं जिनकी रोजी रोटी इसी व्यवसाय पर चलती है। सरकार ने मेडिकल कॉलेज व सहायक अस्पतालों के अलावा संभाग के सभी जिला व कुछ उप जिला अस्पतालों में यह दुकानें खोलने की इजाजत दी है। इससे इनमें कई दवा विक्रेताओं पर थोड़ा बहुत असर तो पड़ेगा। ऐसे में दवा विक्रेताओं का विरोध तो समझ में आता है, लेकिन उन्हें यह भी समझना होगा कि वे एक ऐसे व्यवसाय से जुड़े हैं जो कि सीधा लोगों की जिंदगी के साथ जुड़ा हुआ है। वीरवार से सभी दवा विक्रेता तीन दिनों के लिए हड़ताल पर है। इससे मरीज दवाई के लिए परेशान हो रहे हैं। दवा विक्रेताओं और स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारियों को चाहिए कि वे बैठक कर इस समस्या का समाधान निकालें। अगर इसी तरह से सरकार चुप रही तो इससे आने वाले दिनों में टकराव और बढ़ेगा जिसका परिणाम मरीजों को भुगतना पड़ेगा। सरकार को इस पर तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए। ताकि मरीजों को दवाइयों के लिए कोई दिक्कतें नहीं आईं।
स्थानीय संपादकीय- जम्मू-कश्मीर
सौजन्य- दैनिक जागरण।
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