Wednesday, 31 May 2017

दवा की कीमत (जनसत्ता) November 24, 2016

दवा की कीमत (जनसत्ता)


देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं और इलाज पर होने वाले खर्च की तस्वीर छिपी नहीं है। ऐसे मामले आम हैं कि कोई व्यक्ति या उसका परिवार बीमारी का जरूरी और बेहतर इलाज सिर्फ इसलिए नहीं करा पाता कि उस पर होने वाला खर्च वहन कर सकने में वह सक्षम नहीं है। इसमें अस्पताल और डॉक्टर की फीस से ज्यादा मुश्किल दवाओं की कीमतों के चलते पेश आती है। इसलिए कि डॉक्टर जो दवाएं लेने की सलाह देते हैं वे आमतौर पर किसी खास दवा कंपनी की होती हैं और उनकी कीमत काफी ऊंची होती है। इसके मुकाबले जेनेरिक दवाएं दरअसल ब्रांडेड दवाओं का सस्ता और बेहतर विकल्प हैं, जो असर की कसौटी पर बिल्कुल उनके समान होती हैं। बिल्कुल समान कंपोजिशन यानी रासायनिक सम्मिश्रण होने के बावजूद इनके निर्माण पर बहुत कम खर्च आता है और इनके प्रसार के लिए बेहिसाब पैसा नहीं बहाया जाता, इसलिए इनकी कीमतें काफी कम होती हैं।
जबकि ब्रांडेड दवाओं के विज्ञापन से लेकर डॉक्टरों आदि को प्रभावित करने तक पर इतना खर्च किया जाता है कि कंपनियां इन दवाओं की कीमत कई बार लागत के मुकाबले कई सौ प्रतिशत ज्यादा रखती हैं।इसके बावजूद लोग जेनेरिक दवाओं की ओर रुख इसलिए भी नहीं करते कि या तो उन्हें इनके बारे में जानकारी नहीं होती या फिर चिकित्सक उन्हें प्रत्यक्ष या परोक्ष तरीके से ऐसा करने से रोकते हैं। एक बड़ा कारण यह भी है कि जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता की जगहें बहुत कम हैं और अगर कहीं हैं भी तो उनके बारे में ज्यादातर जरूरतमंद लोगों को जानकारी नहीं होती। इस मसले पर काफी समय से सरकार की ओर से कोशिशें हो रही हैं कि अस्पतालों से लेकर आम पहुंच वाली जगहों पर जेनेरिक दवाएं रखने वाले केंद्रों का प्रसार किया जाए, ताकि चिकित्सा खर्च के मामले में लोगों को कुछ राहत मिल सके। इसी संदर्भ में सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि देश भर में अब तक जेनेरिक दवाओं के पांच सौ चौंतीस स्टोर खुल चुके हैं और अगले साल मार्च तक ऐसे तीन हजार स्टोर और खोले जाने का प्रस्ताव है। गौरतलब है कि सरकार ने विशेष विक्रय केंद्रों के जरिए सभी को किफायती कीमत पर गुणवत्तायुक्त जेनेरिक दवाएं मुहैया कराने के मकसद से प्रधानमंत्री जन औषधि योजना की शुरुआत की है।
सच यह है कि कम कीमत पर समान गुणवत्ता और असर वाली दवाओं तक जन-सामान्य और खासतौर पर गरीब तबकों की पहुंच सुनिश्चित करने के लिहाज से अब तक जितना कुछ किया गया है, वह न के बराबर है। जबकि नामी कंपनियों की दवाओं के बराबर गुणवत्ता वाली जेनेरिक दवाएं साधारण लोगों तक पहुंचाने के मसले पर पिछले कई सालों से चर्चा चल रही है। दवाओं की कीमत की वजह से किसी बीमारी का सही इलाज न करा पाने वाले लोगों की तादाद काफी बड़ी है। मगर जेनेरिक दवाओं के रूप में महंगी दवाओं का विकल्प होने के बावजूद अगर साधारण लोगों की पहुंच इन तक नहीं है तो निश्चित रूप से यह व्यवस्था की इच्छाशक्ति में कमी का नतीजा है। यह ध्यान रखने की बात है कि भारत जेनेरिक दवाओं का उत्पादन करने वाले देशों में प्रमुख है, जो अमेरिका जैसे विकसित देशों समेत विभिन्न देशों को भी इनकी आपूर्ति कर रहा है। सवाल है कि जरूरतमंद लोगों तक इनकी पहुंच क्यों नहीं तय की जा सकी है?
सौजन्य – जनसत्ता, 24-11-2016

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