सोच व व्यवहार में फर्क (दैनिक जागरण)
दवा विहीन मेदिनीनगर स्थित मानसिक स्वास्थ्य केंद्र शासकीय व्यवस्था में सोच और व्यवहार में जमीन-आसमान का अंतर दिखा रहा है। राज्य की राजधानी रांची के उपनगरीय इलाके कांके में स्थित मानसिक आरोग्यशाला पूरे देश में नामी है। इस आरोग्यशाला में दिनानुदिन मरीजों के बढ़ते बोझ को कम करने की नीयत से सरकार ने पांच वर्ष पूर्व सभी पांच प्रमंडलीय मुख्यालयों में मानसिक स्वास्थ्य केंद्र खोलने का लोकप्रिय निर्णय लिया था। इससे संबंधित प्रमंडलों के मरीजों और उनके परिजनों को राहत मिली थी। अत्यंत गंभीर प्रकृति की बीमारी नहीं होने पर उनके खर्च और समय दोनों की बचत हो रही थी। अकेले मेदिनीनगर मानसिक स्वास्थ्य केंद्र में 7193 मरीजों का पंजीयन होना इस बात का प्रमाण है कि उसकी लोकप्रियता और विश्वसनीयता में बढ़ोतरी होती रही। जाहिर है कि इससे रांची की मुख्य आरोग्यशाला के चिकित्सकों और प्रबंधकों का कार्य बोझ थोड़ा घटा ही। यदि इन स्वास्थ्य केंद्रों में मौजूद सुविधाओं में हर साल कुछ वृद्धि की जाती तो कुछ काल बाद मानसिक रोगियों की चिकित्सा की पूरी व्यवस्था हो जाती। तब पूरे देश में राज्य का नाम अधिक रोशन होता।
इसके विपरीत ये स्वास्थ्य केंद्र पिछले तीन महीनों से दवाओं का नितांत अभाव झेल रहे हैं। मेदिनीनगर केंद्र में तो स्वास्थ्य केंद्र भवन के बाहर बोर्ड लगाकर सूचना सार्वजनिक कर दी गई है कि वहां दवाएं हैं ही नहीं। ऐसी स्थिति में उस केंद्र में पदस्थापित चिकित्सक और अन्य कर्मी एक तो बिना काम के वेतन ले रहे हैं, दूसरे उनको खुद भी मानसिक संतोष नहीं होता होगा। मरीज आने पर चिकित्सक केवल परामर्श दे पाने की स्थिति में हैं अथवा रांची रेफर कर औपचारिकता पूरी कर लेने को बाध्य हैं। स्थानीय बाजार में कुछ दवाएं जरूर उपलब्ध हैं लेकिन जो गरीब स्वास्थ्य केंद्र के भरोसे रहते हैं, उनके लिए यह बहुत बड़ा बोझ है। सरकार ने जिस कल्याणकारी भावना से ये केंद्र प्रारंभ किया था, उस पवित्र उद्देश्य पर यह गहरा धक्का ही है। ऐसा भी नहीं है कि सरकार के पास दवा मद में पैसे का अभाव है, बल्कि अभाव कार्य-व्यवहार और प्रबंधकीय व्यवस्था के स्तर पर है। सरकारी कार्य व्यवहार में चुस्ती लाने की गरज से हर विभाग में और हर स्तर पर डिजीटाइजेशन अपनाने के बावजूद मानसिक दवाओं जैसी अत्यंत आवश्यक आवश्यकता की पूर्ति न हो पाना दुखद है। केंद्र प्रभारी द्वारा दवा आपूर्ति के लिए भेजे गए अनुरोध पत्र पर कार्रवाई नहीं हो पाना पूरी व्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिह्न है।
[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]
इसके विपरीत ये स्वास्थ्य केंद्र पिछले तीन महीनों से दवाओं का नितांत अभाव झेल रहे हैं। मेदिनीनगर केंद्र में तो स्वास्थ्य केंद्र भवन के बाहर बोर्ड लगाकर सूचना सार्वजनिक कर दी गई है कि वहां दवाएं हैं ही नहीं। ऐसी स्थिति में उस केंद्र में पदस्थापित चिकित्सक और अन्य कर्मी एक तो बिना काम के वेतन ले रहे हैं, दूसरे उनको खुद भी मानसिक संतोष नहीं होता होगा। मरीज आने पर चिकित्सक केवल परामर्श दे पाने की स्थिति में हैं अथवा रांची रेफर कर औपचारिकता पूरी कर लेने को बाध्य हैं। स्थानीय बाजार में कुछ दवाएं जरूर उपलब्ध हैं लेकिन जो गरीब स्वास्थ्य केंद्र के भरोसे रहते हैं, उनके लिए यह बहुत बड़ा बोझ है। सरकार ने जिस कल्याणकारी भावना से ये केंद्र प्रारंभ किया था, उस पवित्र उद्देश्य पर यह गहरा धक्का ही है। ऐसा भी नहीं है कि सरकार के पास दवा मद में पैसे का अभाव है, बल्कि अभाव कार्य-व्यवहार और प्रबंधकीय व्यवस्था के स्तर पर है। सरकारी कार्य व्यवहार में चुस्ती लाने की गरज से हर विभाग में और हर स्तर पर डिजीटाइजेशन अपनाने के बावजूद मानसिक दवाओं जैसी अत्यंत आवश्यक आवश्यकता की पूर्ति न हो पाना दुखद है। केंद्र प्रभारी द्वारा दवा आपूर्ति के लिए भेजे गए अनुरोध पत्र पर कार्रवाई नहीं हो पाना पूरी व्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिह्न है।
[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]
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