Wednesday, 31 May 2017

जेनेरिक दवा का सच जिसे हम सभी को जानना होगा News Team | May 16, 2017

जेनेरिक दवा का सच जिसे हम सभी को जानना होगा

शैलेश कुमार : दवा, डॉक्टर और मल्टिनशनल दवा कंपनियों के खेल और उनकी लूटमार के बारेमें सोचते हैं ?
सामान्य दवा या जेनेरिक दवा (generic drug) वह दवा है जो बिना किसी पेटेंट के बनायी और वितरित की जाती है। जेनेरिक दवा के फॉर्मुलेशन पर पेटेंट हो सकता है किन्तु उसके सक्रिय घटक (active ingradient) पर पेटेंट नहीं होता। जैनरिक दवाईयां गुणवत्ता में किसी भी प्रकार के ब्राण्डेड दवाईयों से कम नहीं होतीं तथा ये उतनी ही असरकारक है, जितनी की ब्राण्डेड दवाईयाँ। यहाँ तक कि उनकी मात्रा (डोज), साइड-इफेक्ट, सक्रिय तत्व आदि सभी 
लाभ
जैनरिक दवाईयां ब्राण्डेड दवाईयों की तुलना में औसतन पाँच गुना सस्ती होती है। जैनरिक दवाईयों की उपलब्धता आम व्यक्ति को स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करने में बहुत बड़ा योगदान प्रदान कर सकती है तथा इससे ब्राण्डेड कम्पनियों का दवा उद्योग में एकाधिकार को चुनौती मिलेगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जैनरिक दवाईयों के लिखे जाने पर केवल धनी देशों में चिकित्सा व्यय पर 70 प्रतिशत तक कमी आ जायेगी तथा गरीब देशों के चिकित्सा व्यय में यह कमी और भी ज्यादा होगी।
जेनेरिक दवाएं उत्पादक से सीधे रिटेलर तक पहुंचती हैं। इन दवाओं के प्रचार-प्रसार पर कंपनियों को कुछ खर्च नहीं करना पड़ता। एक ही कंपनी की पेटेंट और जेनेरिक दवाओं के मूल्य में काफी अंतर होता है। चूंकि जेनेरिक दवाओं के मूल्य निर्धारण पर सरकारी अंकुश होता है, अत: वे सस्ती होती हैं, जबकि पेटेंट दवाओं की कीमत कंपनियां खुद तय करती हैं, इसलिए वे महंगी होती हैं।
उदाहरण के लिए यदि चिकित्सक ने रक्त कैंसर के किसी रोगी के लिए ‘ग्लाईकेव‘ ब्राण्ड की दवा लिखी है तो महीने भर के कोर्स की कीमत 1,14,400 रूपये होगी, जबकि उसी दवा के दूसरे ब्राण्ड ‘वीनेट‘ की महीने भर के कोर्स की कीमत अपेक्षाकृत काफी कम 11,400 रूपये होगी। सिप्ला इस दवा के समकक्ष जैनरिक दवा ‘इमीटिब‘ 8,000 रूपये में और ग्लेनमार्क केवल 5,720 रूपये में मुहैया करवाती है।
पूरे गुजरात के लोगों को अमदावादा के डॉक्डर्स पर भरोसा है । अपने अपने शहर के बडे से बडे डॉक्टर को छोड कर लोग बडी बिमारी के लिए अमदावाद जाना पसंद करते हैं ।
अमदावाद से एक समाचार है । वहां के डॉक्टर्स जेनरिक दवाओं के लिए सवाल खडे करने लगे हैं, दरदीओं को डराने लगे हैं ।
एक डॉक्टरने तो बोल दिया जेनेरिक दवा लेनी हो तो आपके जोखिम पर लो ।
आप जेनेरिक दवा लेते हो और आप को कुछ हो जाता है तो हमारी जिम्मेदारी नही ऐसे तो सभी डॉकटर्स बोलने लगे हैं और दरदीओं को डराने लगे हैं । वो दरदी और उनके स्वजनो के साथ तुच्छता से बात करने लगे हैं ।
उन्हों ने लिख कर दी हुई ब्रान्डेड दवा के बदले कोइ जेनेरिक दवा लेकर आनेवाले दरदीओं के प्रति तिरस्कार और नाराजगी दिखाते हैं ।
ब्रान्डेड दवा लिख देने वाले डॉक्टर्स को कंपनिया हर साल विदेश की सफर कराती है और बडी बदी गिफ्ट भी देती रहती हैं । ब्रन्डेड दवा का भाव बहुत उंचा रखते हैं, जेनेरिक दवा अंदाज से ६०-७० % सस्ती होती है ।
जेनेरिक दवा और ब्रान्डेड दवा में कोइ अंतर नही होता है । उसके कन्टेन्ट-आंतरिक घटक समान होते हैं । ब्रन्डेडे दवा की बिक्री बढाने, सस्ती दवा से मिलती स्पर्धा जीतने के लिए डॉक्टर्स को रिश्वत दी जाती है और जनता फंस जाती है ।
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विदेश की सफर और गिफ्ट ही काफी नही हो सकती, नियमित रूप से डॉक्टर को पैसा मिलता होगा । देखा गया है कि डॉक्टर जो दवा लिखता है उसके नजदिक की दुकान से वो दवा मिल ही जाती है दूर की दुकानो में कोइ गेरंटी नही । क्या दुकानदार इसलिए वो दवा रखता है क्यों कि पडोसी डॉक्टर हमेशा वो ही दवा लिखता है? ये भी एक कारण जरूर है साथ में दुसरा कारण, डॉक्टर के कमीशन का अकाउन्ट भी उसके पास हो सकता है ।
ब्रांडेड दवाओं के जैसे ही होते हैं। जैनरिक दवाईयों को बाजार में उतारने का लाईसेंस मिलने से पहले गुणवत्ता मानकों की सभी सख्त प्रक्रियाओं से गुजरना होता है।

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