Wednesday, 31 May 2017

योजना का सच

योजना का सच (दैनिक जागरण)

योजना की प्रासंगिकता तभी होती है, जब लक्षित वर्ग तक उसका लाभ पहुंचे। अगर ऐसा नहीं हो पाता तो योजना के औचित्य पर सवाल उठना लाजिमी हो जाता है। ऐसा नहीं होता तो योजना की असफलता तय है व उनका कार्यान्वयन करने वाली संस्थाओं की कार्यप्रणाली पर सवाल उठना लाजिमी हो जाता है। प्रदेश व केंद्र सरकार द्वारा आम जनता की सुविधा के लिए कई योजनाएं संचालित की जा रही हैं। रोगियों को निशुल्क दवाएं उपलब्ध करवाने के लिए केंद्र सरकार से प्रदेश को सालाना करोड़ो रुपये दिए जा रहे हैं। तीन साल में केंद्र सरकार 50 करोड़ रुपये से अधिक इस योजना के तहत प्रदेश सरकार को उपलब्ध करवा चुका है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत भी प्रदेश को करोड़ों रुपये का बजट मिल रहा है। तीन साल में इस योजना के तहत प्रदेश को करीब 681 करोड़ मिले हैं। पिछले वित्तीय वर्ष में प्रदेश को 30. 85 करोड़ रुपये निशुल्क दवाओं के लिए व राष्ट्रीय ग्रामीण मिशन के तहत 246.49 करोड़ रुपये जारी किए। विभागीय आंकड़ों की मानें तो केंद्र से मिली राशि के मुकाबले 281. 26 करोड़ की राशि खर्च की गई है। लेकिन हकीकत यह है कि सरकारी चिकित्सा संस्थानों में मरीजों को निशुल्क दवाएं उपलब्ध नहीं करवाई जा रहीं। केंद्र सरकार ने पांच दर्जन से अधिक दवाओं को सूचीबद्ध भी किया है, लेकिन चिकित्सालयों में सस्ती माने जाने वाली पैरासीटामोल या सर्दी जुकाम की दवा के अलावा दूसरी दवाएं मरीजों को दी ही नहीं जा रहीं। महंगी दवा के लिए रोगी को बाजार पर निर्भर रहना पड़ रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि करोड़ों रुपये खर्च कर जो दवाएं खरीदी जा रही हैं, वे कहां जा रही हैं? महंगी मानी जाने वाली दवाएं मरीजों को क्यों नहीं दी जाती? क्या इन दवाओं की खरीद सिर्फ कागजों में ही की जा रही है? अगर ऐसा है तो केंद्र से मिली राशि कहां जा रही है? ऐसा क्यों है कि स्वास्थ्य से जुड़ी कल्याणकारी योजना का लाभ लोगों तक पहुंच ही नहीं रहा है? अगर कुछ लोगों की लापरवाही के कारण ऐसा हो रहा है तो उनका सच सामने लाकर ऐसे लोगों पर भी नकेल कसनी होगी। दुर्भाग्यपूर्ण है कि शिकायत करने पर कार्रवाई आश्वासनों तक ही सिमटकर रह जाती है। जरूरी है कि पड़ताल हो कि जनहित से जुड़ी योजना के साथ खिलवाड़ रोकने के लिए प्रदेश सरकार प्रभावी कदम उठाए। नीति-नियंताओं को दवा खरीद व वितरण में पारदर्शिता लाने के लिए ठोस योजना बनानी होगी। औषधि केंद्रों के बाहर यह सूचना सार्वजनिक तौर पर लगानी चाहिए कि कौन सी दवा की कितनी उपलब्धता है। औषधि वितरण केंद्र के बाहर शिकायत के लिए सक्षम अधिकारियों के नाम पद व मोबाइल फोन सहित ईमेल पते दर्ज होने चाहिए, जिससे लोग शिकायत तुरंत दर्ज कर सकें। स्वस्थ राज्य का सपना तभी साकार होगा जब सरकार की योजनाओं का लाभ जनता को मिलता रहे।
[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]
सौजन्य – दैनिक जागरण।

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