संचारी रोगों का सामान्य महामारी- विज्ञान*
*यह समझना आवश्यक है कि कोई रोग कब आता है , कैसे और कब फैलता है, उसका नियंत्रण, निवारण तथा उन्मूलन कैसे हो। रोगों या स्वास्थ्य के संबंध प्रसंगों के विभाजन तथा निर्धारण के अध्ययन को महामारी विज्ञान( एपिडेमियोलॉजी) कहा जाता है । महामारी विज्ञान परक अध्ययन रोग से संसंबंध मूल प्रश्ननों अर्थात क्यों, कहां, कैसे , कब और कौन का उत्तर ढूंढने में सहायक होता है।*
*रोगों का कारण:*
*पहले रोगों को दानवों या बुरी आत्माओं के श्राप के रूप में समझा जाता था।* *माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में हुए अनुसंधानों से रोगों के कारणों को जानने समझने में एक महत्वपूर्ण मोड़ आ गया। वैज्ञानिक युग में रोग के कारणों के विभिन्न सिद्धांत प्रचलन में आए । ये हैं :-*
*एक रोग का सुक्ष्मानु- सिद्धांत:-*
*19वीं सदी में तथा 20वीं सदी के प्रारंभ में रोग का सुक्ष्मानु -सिद्धान्त चिकित्सा -विज्ञान पर हावी था । माइक्रोबों या सूक्ष्मजीवों( बैक्टीरिया, वायरस आदि को रोग का एकमात्र कारण दर्शाया गया था। शीघ्र ही यह महसूस किया गया कि यह रोगों के कारणों को समझने का एकतरफा नजरिया है ।* *महामारी विज्ञानपरक त्रयी:-*
*रोग के एजेंटों अर्थात पोषक घटकों और पर्यावरणजन्य घटकों में क्रिया -प्रतिक्रिया होने के परिणाम स्वरूप रोग उपजता है । उदाहरणार्थ बच्चे को खसरा(मीजल्स) होना। इसमें रोग का एजेंट है खसरे का वॉइरस । पोषक घटक कुपोषण हो सकता है । और सर्दी का मौसम पर्यावरणजन्य घटक हो सकता है । तथापि यह जरूरी नहीं है कि रोग के एजेंट के संपर्क में आने वाला हर व्यक्ति रोगी हो जाए ।उदाहरण के लिए कहें तो एक व्यक्ति के शरीर में टी.बी. के सुक्ष्मानु हो सकते हैं पर यह हो सकता है कि वे यक्ष्मा अर्थात ट्यूबरक्यूलोसिस पैदा नहीं करें, अतः शीघ्र ही यह महसूस किया गया कि होने का कारण विभिन्न घटक हो सकते हैं।*
*रोग के बहुघटकीय कारण:*
*म्यूनिख के पेटेन कायफर ने रोगों के बहुघटकीय कारणों की अवधारणा प्रचलित की। कैंसर ,डायबिटीज , हृदय रोग जैसे आधुनिक रोगों को सूक्ष्माणु -सिद्धांत के आधार पर नहीं समझाया जा सकता। इन रोगों के घटकों का संबंध भोजन, जीवन शैली और व्यवहार से जुड़ा हुआ है । अतः यह महसूस किया गया कि संचारी तथा गैर संचारी दोनों ही प्रकार के रोग बहुस्तरीय घटकों के परिणाम स्वरूप उभरते हैं, जिसे 'जोखम- घटक' का नाम दिया गया । इससे लोक- स्वास्थ्य विशेषज्ञों को अपनी रोग -* *नियंत्रक और निवारक* *गतिविधियों को जनसंख्या के निम्नलिखित 3 बिंदुओं पर केंद्रित करने में सहायता मिली।*
*क रोगी -समूह*
*ख) जनसंख्या का वह समूह* *जिसे रोग होने का खतरा है ।*
*ग) और सामान्यतः स्वस्थ जनसंख्या -समूह*
*इससे नियंत्रक व निवारक गतिविधियों की योजना बनाकर इनमें से प्रत्येक समूह पर केंद्रित करने में आसानी हो गई , किंतु संपूर्णता में इसे एक समग्र -पैकेज अर्थात स्वास्थ्य कार्यक्रम या प्रायोजना के रूप में ही लागू किया गया।*
*रोगों का प्राकृतिक इतिहास:*
*यह एक तरीका है जिससे रोग अपने शुरुआती चरण से एक अवधि के बाद विकसित होकर सुधार , अक्षमता या मृत्यु की शक्ति,( उपचार या निवारण के अभाव में,) पर जाकर समाप्त होता है।*
*रोग के प्राकृतिक इतिहास के दो चरण हैं:-*
*१) रोगजनकता- पूर्व चरण : पर्यावरण में प्रक्रिया*
*२) रोगजनकता चरण : मनुष्य में प्रक्रिया*
*रोगजनकता पूर्व चरण:*
*इसका अर्थ मनुष्य पर रोग के आक्रमण से पहले की अवधि से है। रोग के एजेंट अभी तक मनुष्य में प्रवेश नहीं कर पाए हैं पर मनुष्य में रोग के प्रवेश को अनुकूल बनाने वाले घटक पर्यावरण में विद्यमान हैं । इस स्थिति के लिए कहा गया है --"* *मनुष्य रोग के भारी खतरे के सामने है ।"*
*रोगजनकता चरण :*
*संक्रमण -प्रतिरोध क्षमता खो चुके मनुष्य के शरीर में रोग के एजेंट के प्रवेश के साथ ही यह चरण शुरू होता है। प्रवेश के बाद के आसार संक्रामक रोगों में अच्छी तरह लक्षित होने के साथ ही यह चरण शुरू हो जाता है । प्रवेश के बाद के आसार संक्रामक रोगों में अच्छी तरह लक्षित होते हैं। रोग उभरने की एक अवधि के दौरान रोग बढ़ने लगता है। रोग के एजेंट अनेक रूप लेकर फैलते -पनपते हुए शरीर कोशिकाओं और अंगों में असामान्य परिवर्तन ला देते हैं । तथापि, इस चरण को औषधि- उपचार, टीकाकरण , केमोथेरेपी तथा लोक स्वास्थ्य एवं स्वच्छता उपायों से बदला जा सकता है। जैसे लेप्टोसिपिरोसिस, प्लेग, कॉलरा आदि।*
*संक्रामकता नैदानिक अर्थात क्लीनिकल जैसे रोग के लक्षणों के साथ विविध रूप में प्रकट होना यह सब क्लीनिकल(जैसे रोग के चिन्हों व लक्षणों के साथ विविध रूप में प्रकट होना ) या 'सब्क्लीनिक'(व्यक्ति के शरीर में रोग के एजेंट मौजूद रहते हैं लेकिन रोग के खास चिन्ह और लक्षण विस्तारित नहीं होते। उदाहरणतया टाइफाइड में "कैरियरसएचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति लोक स्वास्थ्य के कार्यक्रम को समाप्त करने पर व्यापक रूप से केंद्रित हैं इसीलिए हम किसी रोग को नियंत्रित या नष्ट करने में सक्षम हैं*
*रोग का आइसबर्ग फिनोमिना :*
*आइसबर्ग की तैरती हुई सतह उन क्लीनिकल मामलों का* *प्रतिनिधित्व करती है जिन्हें एक डॉक्टर के स्वास्थ्य कर्मी समुदाय में देखता है। पानी में डूबा हुआ हिस्सा छिपे हुए जैसे सबक्लिनिकल latent, अनिदानित, असूचित, मामलों का प्रतिनिधित्व करता है । इसलिए आइसबर्ग का छिपा हुआ हिस्सा (सबक्लिनिकल मामले) रोग के अनिदानित (रिजर्वायर) स्रोत को समाये रहता है। लोक स्वास्थ्य तथा स्वच्छता कार्य -व्यवहार में स्रोत की पहचान तथा उसके विस्तार को जानना और संक्रमण के स्रोत को हटाने के लिए किए जाने वाले उपाय अत्यधिक चुनौतीपूर्ण स्थितियां हैं।*
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